The Bhagavad Gita's first chapter, known as Arjuna Vishada Yoga or the Yoga of Arjuna's Dejection, sets the stage for the philosophical dialogue between Prince Arjuna and Lord Krishna on the battlefield of Kurukshetra. Here's a brief overview:
1. Setting the Scene: The Mahabharata war is about to commence on the battlefield of Kurukshetra. Arjuna, a skilled warrior and a central character in the epic, is filled with doubt and moral dilemmas about fighting in the war.
2. Arjuna's Conflict: Arjuna sees his beloved ones, including his teachers, cousins, and friends, on both sides of the battlefield. Overwhelmed by emotions and compassion, he is unable to decide whether to fight or to retreat from the battle altogether.
3. Dialogue with Krishna: Arjuna turns to his charioteer, Lord Krishna, seeking guidance. He expresses his confusion and distress, questioning the righteousness of engaging in a war that will result in the death of his kin.
4. Krishna's Response: Lord Krishna, who is an incarnation of the divine, begins to counsel Arjuna. He elucidates the concepts of duty (dharma), righteousness, and the nature of the self. Krishna emphasizes the importance of fulfilling one's duty, regardless of the consequences, and offers profound philosophical insights to alleviate Arjuna's doubts.
5. Conclusion: Despite Krishna's teachings, Arjuna's inner conflict is not resolved in the first chapter. However, it sets the stage for the subsequent chapters where Krishna expounds on various paths of yoga, including karma yoga (the yoga of action), bhakti yoga (the yoga of devotion), and jnana yoga (the yoga of knowledge), ultimately guiding Arjuna towards self-realization and enlightenment.
Overall, the first chapter of the Bhagavad Gita introduces the central themes of duty, morality, and self-realization, laying the foundation for the profound spiritual discourse that unfolds in the subsequent chapters.
Chapter 1 : Contain 47 verse
अध्याय 1 का श्लोक 1
(धृतराष्ट्र )
धर्मक्षेत्रो, कुरुक्षेत्रो, समवेताः, युयुत्सवः,
मामकाः, पाण्डवाः, च, एव, किम्, अकुर्वत, सज्य।।1।।
हिन्दी: हे संजय! धर्मभूमि कुरुक्षेत्र में एकत्रित युद्धकी इच्छावाले मेरे और यहाँ पाण्डुके पुत्रों ने क्या किया? (1)
Dhṛtarāṣṭra said: O Sañjaya, after assembling in the place of
pilgrimage at Kurukṣetra, what did my sons and the sons of Pāṇḍu do,
being desirous to fight?
अध्याय 1 का श्लोक 2
(सज्य उवाच)
दृष्टा तु, पाण्डवानीकम्, व्यूढम्, दुर्योधनः, तदा,
आचार्यम्, उपसग्म्य, राजा, वचनम्, अब्रवीत्।।2।।
हिन्दी: उस समय राजा दुर्योंधन ने व्यूह रचनायुक्त पाण्डवों की सेनाको देखकर और द्रोणाचार्य के पास जाकर यह वचन कहा। (2)
Sañjaya said: O King, after looking over the army gathered by the
sons of Pāṇḍu, King Duryodhana went to his teacher and began to
speak the following words:
अध्याय 1 का श्लोक 3
पश्य, एताम्, पाण्डुपुत्राणाम्, आचार्य, महतीम्, चमूम्,
व्यूढाम्, द्रुपदपुत्रोण, तव, शिष्येण, धीमता।।3।।
हिन्दी: हे आचार्य! आपके बुद्धिमान् शिष्य द्रुपदपुत्र धृष्टद्युम्न द्वारा व्यूहाकार खड़ी की हुई पाण्डु-पुत्रों की इस बड़ी भारी सेनाको देखिये। (3)
O my teacher, behold the great army of the sons of Pāṇḍu, so
expertly arranged by your intelligent disciple, the son of Drupada.
अध्याय 1 का श्लोक 4, 5, 6
अत्र, शूराः, महेष्वासाः, भीमार्जुनसमाः, युधि,
युयुधानः, विराटः, च, दु्रपदः, च, महारथः।।4।।
धृष्टकेतुः, चेकितानः, काशिराजः, च, वीर्यवान्
पुरुजित्, कुन्तिभोजः, च, शैब्यः, च, नरपुग्वः।।5।।
युधामन्युः, च, विक्रान्तः, उत्तमौजाः, च, वीर्यवान्,
सौभद्रः, द्रौपदेयाः, च, सर्वे, एव, महारथाः।।6।।
हिन्दी: इस सेना में बड़े-बड़े धनुषोंवाले तथा युद्धमें भीम और अर्जुनके समान शूर-वीर सात्यकि और विराट तथा महारथी राजा द्रुपद {4}
धृष्टकेतु और चेकितान तथा बलवान् काशिराज पुरुजित् कुन्तिभोज और मनुष्योंमें श्रेष्ठ शैब्य {5}
पराक्रमी युधामन्यु तथा बलवान् उत्तमौजा सुभद्रापुत्र अभिमन्यु एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र ये सभी महारथी हैं। {6}
Here in this army there are many heroic bowmen equal in fighting to Bhīma and Arjuna; there are also great fighters like Yuyudhāna, Virāṭa and Drupada.
There are also great, heroic, powerful fighters like Dhṛṣṭaketu, Cekitāna, Kāśirāja, Purujit, Kuntibhoja and Śaibya.
There are the mighty Yudhāmanyu, the very powerful Uttamaujā,
the son of Subhadrā and the sons of Draupadī. All these warriors are
great chariot fighters.
अध्याय 1 का श्लोक 7
अस्माकम्, तु, विशिष्टाः, ये, तान्, निबोध, द्विजोत्तम,
नायकाः, मम, सैन्यस्य, सज्ञार्थम्, तान्, ब्रवीमि, ते।। 7।।
हिन्दी: हे ब्राह्मणश्रेष्ठ! अपने पक्षमें भी जो प्रधान हैं उनको आप समझ लीजिये। आपकी जानकारीके लिए मेरी सेनाके जो-जो सेनापति हैं उनको बतलाता हूँ। (7)
O best of the brāhmaṇas, for your information, let me tell you about
the captains who are especially qualified to lead my military force.
अध्याय 1 का श्लोक 8
भवान्, भीष्मः, च, कर्णः, च, कृपः, च, समितिजयः,
अश्वत्थामा, विकर्णः, च, सौमदत्तिः, तथा, एव, च।।8।।
हिन्दी: आप-द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म तथा कर्ण और संग्रामविजयी कृपाचार्य तथा वैसे ही अश्वत्थामा विकर्ण और सोमदत्तका पुत्र भूरिश्रवा। (8)
There are personalities like yourself, Bhīṣma, Karṇa, Kṛpa,
Aśvatthāmā, Vikarṇa and the son of Somadatta called Bhuriśravā, who
are always victorious in battle
अध्याय 1 का श्लोक 9
अन्ये, च, बहवः, शूराः, मदर्थे, त्यक्तजीविताः,
नानाशस्त्रप्रहरणाः, सर्वे, युद्धविशारदाः।।9।।
हिन्दी: और भी मेरे लिये जीवनकी आशा त्याग देनेवाले बहुत-से शूरवीर अनेक प्रकारके शस्त्रस्त्रोंसे सुसज्जित और सब-के-सब युद्धमें चतुर हैं। (9)
There are many other heroes who are prepared to lay down their
lives for my sake. All of them are well equipped with different kinds of
weapons, and all are experienced in military science.
अध्याय 1 का श्लोक 10
अपर्याप्तम्, तत्, अस्माकम्, बलम्, भीष्माभिरक्षितम्,
पर्याप्तम्, तु, इदम्, एतेषाम्, बलम्, भीमाभिरक्षितम्।।10।।
हिन्दी: भीष्मपितामह द्वारा रक्षित हमारी वह सेना सब प्रकार से अजेय है और भीमद्वारा रक्षित इन लोगों की यह सेना जीतने में सुगम है। (10)
Our strength is immeasurable, and we are perfectly protected by
Grandfather Bhīṣma, whereas the strength of the Pāṇḍavas, carefully
protected by Bhīma, is limited.
अध्याय 1 का श्लोक 11
अयनेषु, च, सर्वेषु, यथाभागम्, अवस्थिताः,
भीष्मम्, एव, अभिरक्षन्तु, भवन्तः, सर्वे, एव, हि।।11।।
हिन्दी: इसलिए सब मोर्चोंपर अपनी-अपनी जगह स्थित रहते हुए आपलोग सभी निःसन्देह भीष्मपितामहकी ही सब ओरसे रक्षा करें। (11)
Now all of you must give full support to Grandfather Bhīṣma,
standing at your respective strategic points in the phalanx of the army.
अध्याय 1 का श्लोक 12
तस्य, सजनयन्, हर्षम्, कुरुवृद्धः, पितामहः,
सिंहनादम्, विनद्य, उच्चैः, शङ्खम्, दध्मौ, प्रतापवान्।।12।।
हिन्दी: कौरवों में वृद्ध बड़े प्रतापी पितामह भीष्मने उस दुर्योंधन के हृदयमें हर्ष उत्पन्न करते हुए उच्च स्वरसे सिंहकी दहाड़ के समान गरजकर शंख बजाया। (12)
Then Bhīṣma, the great valiant grandsire of the Kuru dynasty, the
grandfather of the fighters, blew his conchshell very loudly like the
sound of a lion, giving Duryodhana joy.
अध्याय 1 का श्लोक 13
ततः, शङ्खाः, च, भेर्यः, च, पणवानकगोमुखाः,
सहसा, एव, अभ्यहन्यन्त, सः, शब्दः, तुमुलः, अभवत्।।13।।
हिन्दी: इसके पश्चात् शंख और नगारे तथा ढोल, मृदंग और नरसिंघे आदि बाजे एक साथ ही बज उठे। उनका वह शब्द बड़ा भयंकर हुआ। (13)
After that, the conchshells, bugles, trumpets, drums and horns were
all suddenly sounded, and the combined sound was tumultuous.
अध्याय 1 का श्लोक 14
ततः, श्वेतैः, हयैः, युक्ते, महति, स्यन्दने, स्थितौ,
माधवः, पाण्डवः, च, एव, दिव्यौ, शङ्खौ, प्रदध्मतुः।।14।।
हिन्दी: इसके अनन्तर सफेद घोड़ोंसे युक्त उत्तम रथमें बैठे हुए श्रीकृष्ण महाराज और अर्जुनने भी अलौकिक शंख बजाये। (14)
On the other side, both Lord Kṛṣṇa and Arjuna, stationed on a great
chariot drawn by white horses, sounded their transcendental
conchshells.
अध्याय 1 का श्लोक 15
पाचजन्यम्, हृषीकेशः, देवदत्तम्, धनजयः,
पौण्ड्रम्, दध्मौ, महाशङ्खम्, भीमकर्मा, वृकोदरः।।15।।
हिन्दी: श्रीकृष्ण महाराज ने पाजन्य नामक अर्जुन ने देवदत्त नामक और भयानक कर्मवाले भीमसेन ने पौण्ड्र नामक महाशंख बजाया। (15)
Then, Lord Kṛṣṇa blew His conchshell, called Pāñcajanya; Arjuna
blew his, the Devadatta; and Bhīma, the voracious eater and performer
of Herculean tasks, blew his terrific conchshell called Pauṇḍram.
अध्याय 1 का श्लोक 16-18
अनन्तविजयम्, राजा, कुन्तीपुत्रः, युधिष्ठिरः,
नकुलः, सहदेवः, च, सुघोषमणिपुष्पकौ।।16।।
काश्यः, च, परमेष्वासः, शिखण्डी, च, महारथः,
धृष्टद्युम्नः, विराटः, च, सात्यकिः, च, अपराजितः।।17।।
द्रुपद:, द्रौपदेयाः, च, सर्वशः, पृथिवीपते,
सौभद्रः, च, महाबाहुः, शङ्खान्, दध्मुः, पृथक्, पृथक्।।18।।
हिन्दी: कुन्तीपुत्र राजा युधिष्ठिर ने अनन्तविजय नामक और नकुल तथा सहदेव ने सुघोष और मणिपुष्पक नामक शंख बजाये। (16)
श्रेष्ठ धनुषवाले काशिराज और महारथी शिखण्डी एवं धृष्टद्युम्न तथा राजा विराट और अजेय सात्यकि राजा द्रुपद एवं द्रौपदी के पाँचों पुत्र और बड़ी भुजावाले सुभद्रापुत्र अभिमन्यु इन सभीने हे राजन्! सब ओरसे अलग-अलग शंख बजाये। (17, 18)
King Yudhiṣṭhira, the son of Kuntī, blew his conchshell, the
Anantavijaya, and Nakula and Sahadeva blew the Sughoṣa and
Maṇipuṣpaka. That great archer the King of Kāśī, the great fighter
Śikhaṇḍī, Dhṛṣṭadyumna, Virāṭa and the unconquerable Sātyaki,
Drupada, the sons of Draupadī, and the others, O King, such as the son
of Subhadrā, greatly armed, all blew their respective conchshells.
अध्याय 1 का श्लोक 19
सः, घोषः, धार्तराष्ट्राणाम्, हृदयानि, व्यदारयत्,
नभः, च, पृथिवीम्, च, एव, तुमुलः, व्यनुनादयन्।।19।।
हिन्दी: और उस भयानक शब्द ने आकाश और पृथ्वी को भी गुँजाते हुए धृतराष्ट्र के यानि आपके पक्षवालों के हृदय विदीर्ण कर दिये। (19)
The blowing of these different conchshells became uproarious, and
thus, vibrating both in the sky and on the earth, it shattered the hearts
of the sons of Dhṛtarāṣṭra.
अध्याय 1 का श्लोक 20-22
अथ, व्यवस्थितान्, दृष्टवा, धार्तराष्ट्रान्, कपिध्वजः,
प्रवृत्ते, शस्त्रसम्पाते, धनुः, उद्यम्य, पाण्डवः।।20।।
हृषीकेशम्, तदा, वाक्यम्, इदम्, आह, महीपते,
सेनयोः, उभयोः, मध्ये, रथम्, स्थापय, मे, अच्युत।।21।।
यावत्, एतान्, निरीक्षे, अहम्, योद्धुकामान्, अवस्थितान्,
कैः, मया, सह, योद्धव्यम्, अस्मिन्, रणसमुद्यमे।।22।।
हिन्दी: हे राजन्! इसके बाद कपिध्वज अर्जुन ने मोर्चा बाँधकर डटे हुए धृतराष्ट्र सम्बन्धियों को देखकर उस शस्त्र चलने की तैयारी के समय धनुष उठाकर हृषीकेश श्रीकृष्ण महाराज से यह वचन कहा हे, अच्युत! मेरे रथको दोनों सेनाओं के बीच में खड़ा कीजिये। (20, 21)
जबतक कि मैं युद्ध-क्षेत्रमें डटे हुए युद्धके अभिलाषी इन विपक्षी योद्धओंको भली प्रकार देख लूँ कि इस युद्धरूप व्यापारमें मुझे किन-किनके साथ युद्ध करना योग्य है। (22)
O King, at that time Arjuna, the son of Pāṇḍu, who was seated in his chariot, his flag marked with Hanumān, took up his bow and prepared to shoot his arrows, looking at the sons of Dhṛtarāṣṭra. O King, Arjuna then spoke to Hṛṣīkeśa [Kṛṣṇa] these words:
Arjuna said: O infallible one, please draw my chariot between the two armies so that I may see who is present here, who is desirous of fighting, and with whom I must contend in this great battle attempt.
अध्याय 1 का श्लोक 23
योत्स्यमानान्, अवेक्षे, अहम्, ये, एते, अत्र, समागताः,
धार्तराष्ट्रस्य, दुर्बुद्धेः, युद्धे, प्रियचिकीर्षवः।।23।।
हिन्दी: दुर्बुद्धि धृतराष्ट्र के दुर्योंधन का युद्धमें हित चाहनेवाले जो-जो ये राजालोग इस सेना में आये हैं इन युद्ध करनेवालों को मैं देखूँगा। (23)
Let me see those who have come here to fight, wishing to please the
evil-minded son of Dhṛtarāṣṭra.
अध्याय 1 का श्लोक 24-25
(संजय उवाच)
एवम्, उक्तः, हृषीकेशः, गुडाकेशेन, भारत,
सेनयोः, उभयोः, मध्ये, स्थापयित्वा, रथोत्तमम्।।24।।
भीष्मद्रोणप्रमुखतः, सर्वेषाम्, च, महीक्षिताम्,
उवाच, पार्थ, पश्य, एतान्, समवेतान्, कुरून्, इति।।25।।
हिन्दी: हे धृतराष्ट्र! अर्जुन द्वारा इस प्रकार कहे हुए महाराज श्रीकृणचन्द्र ने दोनों सेनाओं के बीच में भीष्म और द्रोणाचार्य के सामने तथा सम्पूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथको खड़ा करके इस प्रकार कहा कि हे पार्थ! युद्ध के लिये जुटे हुए इन कौरवों को देख। (24, 25)
Sañjaya said: O descendant of Bharata, being thus addressed by Arjuna, Lord Kṛṣṇa drew up the fine chariot in the midst of the armies of both parties.
In the presence of Bhīṣma, Droṇa and all other chieftains of the
world, Hṛṣīkeśa, the Lord, said, Just behold, Pārtha, all the Kurus who
are assembled here.
अध्याय 1 का श्लोक 26-27
तत्र, अपश्यत्, स्थितान्, पार्थः, पित¤न्, अथ, पितामहान्,
आचार्यान्, मातुलान्, भ्रात¤न्, पुत्रान्, पौत्रान्, सखीन्,तथा (26)
श्वशुरान्, सुहृदः, च, एव, सेनयोः, उभयोः, अपि,
तान्, समीक्ष्य, सः, कौन्तेयः, सर्वान्, बन्धून्, अवस्थितान्,।। (27)
हिन्दी: इसके बाद पृथापुत्र अर्जुनने उन दोनों ही सेनाओं में स्थित ताऊ-चाचों को दादों-परदादों को गुरुओं को मामाओं को भाइयों को पुत्रों को पौत्रों को तथा मित्रों कों ससुरों को और सुहृदों को भी देखा। उन उपस्थित सम्पूर्ण बन्धुओं को देखकर उस कुन्तीपुत्र अर्जुन ने। (26, 27)
There Arjuna could see, within the midst of the armies of both parties, his fathers, grandfathers, teachers, maternal uncles, brothers, sons, grandsons, friends, and also his father-in-law and well-wishers— all present there.
When the son of Kuntī, Arjuna, saw all these different grades of
friends and relatives, he became overwhelmed with compassion and
spoke thus:
अध्याय 1 का श्लोक 28
(अर्जुन उवाच)
कृपया, परया, आविष्टः, विषीदन्, इदम्, अब्रवीत्,
दृष्टवा, इमम्, स्वजनम्, कृष्ण, युयुत्सुम्, समुपस्थितम्।।28।।
हिन्दी: अत्यन्त करुणासे युक्त होकर शोक करते हुए यह वचन बोले। हे कृष्ण! युद्ध-क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजन-समुदायको देखकर (28)
Arjuna said: My dear Kṛṣṇa, seeing my friends and relatives present
before me in such a fighting spirit, I feel the limbs of my body quivering
and my mouth drying up.
अध्याय 1 का श्लोक 29
सीदन्ति, मम, गात्रणि, मुखम्, च, परिशुष्यति,
वेपथुः, च, शरीरे, मे, रोमहर्षः, च, जायते।।29।।
हिन्दी: मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं। और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीरमें कम्पन एवं रोमांच हो रहा है। (29)
My whole body is trembling, and my hair is standing on end. My
bow Gāṇḍīva is slipping from my hand, and my skin is burning.
अध्याय 1 का श्लोक 30
गाण्डीवम्, स्त्रांसते, हस्तात्, त्वक्, च, एव, परिदह्यते,
न, च, शक्नोमि, अवस्थातुम्, भ्रमति, इव, च, मे, मनः।।30।।
हिन्दी: हाथ से गाण्डीव धनुष गिर रहा है और त्वचा भी बहुत जल रही है तथा मेरा मन भ्रमित-सा हो रहा है इसलिए मैं खड़ा रहने को भी समर्थ नहीं हूँ। (30)
I am now unable to stand here any longer. I am forgetting myself,
and my mind is reeling. I foresee only evil, O killer of the Keśī demon.
अध्याय 1 का श्लोक 31
निमित्तानि, च, पश्यामि, विपरीतानि, केशव,
न, च, श्रेयः, अनुपश्यामि, हत्वा, स्वजनम्, आहवे।।31।।
हिन्दी: हे केशव! मैं लक्षणोंको भी विपरीत ही देख रहा हूँ तथा युद्धमें स्वजनसमुदायको मारकर कल्याण भी नहीं देखता। (31)
I do not see how any good can come from killing my own kinsmen in
this battle, nor can I, my dear Kṛṣṇa, desire any subsequent victory,
kingdom, or happiness.
अध्याय 1 का श्लोक 32-35
न, काङ्क्षे, विजयम्, कृष्ण, न, च, राज्यम्, सुखानि, च,
किम्, नः, राज्येन, गोविन्द, किम्, भोगैः, जीवितेन, वा।।32।।
येषाम्, अर्थे, काङ्क्षितम्, नः, राज्यम्, भोगाः, सुखानि, च,
ते, इमे, अवस्थिताः, युद्धे, प्राणान्, त्यक्त्वा, धनानि, च।।33।।
आचार्याः, पितरः, पुत्रः, तथा, एव, च, पितामहाः,
मातुलाः, श्वशुराः, पौत्रः, श्यालाः, सम्बन्धिनः, तथा।।34।।
एतान्, न, हन्तुम्, इच्छामि, घ्नतः, अपि, मधुसूदन,
अपि त्रौलोक्यराज्यस्य, हेतोः, किम्, नु, महीकृते।।35।।
हिन्दी: हे कृष्ण! मैं न तो विजय चाहता हूँ और न राज्य तथा सुखोंको ही; हे गोविन्द! हमें ऐसे राज्य से क्या प्रयोजन है अथवा ऐसे भोगों से और जीवन से भी क्या लाभ है?। (32)
हमें जिनके लिये राज्य भोग और सुखादि अभीष्ट हैं वे ही ये सब धन और जीवन की आशा को त्यागकर युद्धमें खड़े हैं। (33)
गुरुजन ताऊ-चाचे लड़के और उसी प्रकार दादे मामे ससुर पौत्र साले तथा और भी सम्बन्धी लोग हैं। (34)
हे मधुसूदन! मुझे मारने पर भी अथवा तीनों लोकों के राज्यके लिये भी मैं इन सबको मारना नहीं चाहता फिर पृथ्वी के लिये तो कहना ही क्या है?। (35)
O Govinda, of what avail to us are kingdoms, happiness or even life itself when all those for whom we may desire them are now arrayed in this battlefield? O Madhusūdana, when teachers, fathers, sons, grandfathers, maternal uncles, fathers-in-law, grandsons, brothers-inlaw and all relatives are ready to give up their lives and properties and are standing before me, then why should I wish to kill them, though I may survive? O maintainer of all creatures, I am not prepared to fight with them even in exchange for the three worlds, let alone this earth.
अध्याय 1 का श्लोक 36
निहत्य, धार्तराष्ट्रान्, नः, का, प्रीतिः, स्यात्, जनार्दन,
पापम्, एव, आश्रयेत्, अस्मान्, हत्वा, एतान्, आततायिनः।।36।।
हिन्दी: हे जनार्दन! धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारकर हमें क्या प्रसन्नता होगी? इन आततायियों को मारकर तो हमें पाप ही लगेगा। (36)
Sin will overcome us if we slay such aggressors. Therefore it is not
proper for us to kill the sons of Dhṛtarāṣṭra and our friends. What
should we gain, O Kṛṣṇa, husband of the goddess of fortune, and how
could we be happy by killing our own kinsmen?
अध्याय 1 का श्लोक 37
तस्मात्, न, अर्हाः, वयम्, हन्तुम्, धार्तराष्ट्रान्, स्वबान्धवान्,
स्वजनम्, हि, कथम्, हत्वा, सुखिनः, स्याम, माधव।।37।।
हिन्दी: अतएव हे माधव! अपने ही बान्धव धृतराष्ट्र के पुत्रों को मारने के लिये हम योग्य नहीं हैं क्योंकि अपने ही कुटुम्ब को मारकर हम कैसे सुखी होंगे?। (37)
Therefore, Krsna, it does not behove us to kill our relations, the sons of Dhritarastra. For how can we be happy after killing our own kinsmen?
अध्याय 1 का श्लोक 38-39
यद्यपि, एते, न, पश्यन्ति, लोभोपहतचेतसः,
कुलक्षयकृतम्, दोषम्, मित्रद्रोहे, च, पातकम्।।38।।
कथम्, न, ज्ञेयम्, अस्माभिः, पापात्, अस्मात्, निवर्तितुम्,
कुलक्षयकृतम्, दोषम्, प्रपश्यभ्दिः, जनार्दन।।39।।
हिन्दी: यद्यपि लोभसे भ्रष्टचित हुए ये लोग कुलके नाशसे उत्पन्न दोषको और मित्रोंसे विरोध करने में पाप को नहीं देखते तो भी हे जनार्दन! कुलके नाशसे उत्पन्न दोष को जानने वाले हम लोगों को इस पापसे हटने के लिये क्यों नहीं विचार करना चाहिये?। (38, 39)
Even if these people, with minds blinded by greed; perceive no evil in destroying their own race and no sin in treason to friends, why should not we, O Krsna, who see clearly the sin accruing from the destruction of one’s family think of turning away from this crime. (38-39)
अध्याय 1 का श्लोक 40
कुलक्षये, प्रणश्यन्ति, कुलधर्माः, सनातनाः,
धर्मे, नष्टे, कुलम्, कृत्स्न्नम्, अधर्मः, अभिभवति, उत।।40।।
हिन्दी: कुल के नाश से सनातन कुलधर्म नष्ट हो जाते हैं धर्मके नाश हो जानेपर सम्पूर्ण कुल में पाप भी बहुत फैल जाता है। (40)
Age-long family traditions disappear with the destruction of a family; and virtue having been lost, vice takes hold of the entire race. (40)
अध्याय 1 का श्लोक 41
अधर्माभिभवात्, कृष्ण, प्रदुष्यन्ति, कुलस्त्रिायः,
स्त्रीषु, दुष्टासु, वाष्र्णेय, जायते, वर्णसंकरः।।41।।
हिन्दी: हे कृष्ण! पापके अधिक बढ़ जाने से कुलकी स्त्रियाँ अत्यन्त दूषित हो जाती हैं और हे वाष्र्णेंय! स्त्रियोंके दूषित चरित्र वाली हो जानेपर वर्णशंकर संतान उत्पन्न होती है। (41)
With the preponderance of vice, Krsna, the women of the family become corrupt; and with the corruption of women, O descendant of Vrsni, there ensues an intermixture of castes. (41)
अध्याय 1का श्लोक 42
संकरः, नरकाय, एव, कुलघ्नानाम्, कुलस्य, च,
पतन्ति, पितरः, हि, एषाम्, लुप्तपिण्डोदकक्रियाः।।42।।
हिन्दी: वर्णसंकर कुलघातियों को और कुल को नरक में ले जाने के लिये ही होता है गुप्त शारीरिक विलास जो नर-मादा के बीज और रज रूप जल की क्रिया से इनके वंश भी अधोगति को प्राप्त होते हैं। (42)
Admixture of blood damns the destroyers of the race as well as the race itself. Deprived of the offerings of rice and water (Sraddha, Tarpana, etc.,) the manes of their race also fall. (42)
अध्याय 1 का श्लोक 43
दोषैः, एतैः, कुलघ्नानाम्, वर्णसंकरकारकैः,
उत्साद्यन्ते, जातिधर्माः, कुलधर्माः, च, शाश्वताः।।43।।
हिन्दी: इन वर्णसंकरकारक दोषों से कुलघातियों के सनातन कुल-धर्म और जाति- धर्म नष्ट हो जाते हैं। (43)
Through these evils bringing about an intermixture of castes, the age-long caste traditions and family customs of the killers of kinsmen get extinct.
अध्याय 1 का श्लोक 44
उत्सन्नकुलधर्माणाम्, मनुष्याणाम्, जनार्दन,
नरके, अनियतम्, वासः, भवति, इति, अनुशुश्रुम।।44।।
हिन्दी: हे जनार्दन! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है ऐसे मनुष्योंका अनिश्चित कालतक नरकमें वास होता है ऐसा हम सुनते आये हैं। (44)
Krsna, we hear that men who have lost their family traditions dwell in hell for an indefinite period of time. (44)
अध्याय 1 का श्लोक 45
अहो, बत, महत्, पापम्, कर्तुम्, व्यवसिताः, वयम्,
यत्, राज्यसुखलोभेन, हन्तुम्, स्वजनम्, उद्यताः।।45।।
हिन्दी: हा! शोक! हमलोग बुद्धिमान् होकर भी महान् पाप करने को तैयार हो गये हैं जो राज्य और सुख के लोभ से स्वजनों को मारने के लिये उद्यत हो गये हैं। (45)
Oh what a pity! Though possessed of intelligence we have set our mind on the commission of a great sin in that due to lust for throne and enjoyment we are intent on killing own kinsmen. (45)
अध्याय 1 का श्लोक 46
यदि, माम्, अप्रतीकारम्, अशस्त्राम्, शस्त्रापाणयः,
धार्तराष्ट्राः, रणे, हन्युः, तत्, मे, क्षेमतरम्, भवेत्।।46।।
हिन्दी: यदि मुझ शस्त्ररहित एवं सामना न करनेवाले को शस्त्र हाथ में लिये हुए धृतराष्ट्र के पुत्र रण में मार डालें तो वह मरना भी मेरे लिये अधिक कल्याण-कारक होगा। (46)
It would be better for me if the sons of Dhrtarastra, armed with weapons, killed me in battle while I was unarmed and unresisting. (46)
अध्याय 1 का श्लोक 47
एवम्, उक्त्वा, अर्जुनः, सङ्ख्ये, रथोपस्थे, उपाविशत्,
विसृज्य, सशरम्, चापम्, शोकसंविग्नमानसः।।47।।
हिन्दी: रणभूमि में शोक से उद्विग्न मनवाला अर्जुन इस प्रकार कहकर बाण सहित धनुष को त्यागकर रथके पिछले भागमें बैठ गया। (47)
Sanjaya said : Arjuna, whose mind was agitated by grief on the battle-field, having spoken, thus, and having thrown aside his bow and arrows, sank into the hinder part of his chariot. (47)
Chapter 1 Of Bhagwat Geeta