कर्ण, महाभारत में सबसे जटिल और प्रभावशाली पात्रों में से एक है। उसकी कहानी में दुःख, वफादारी और नैतिक अस्पष्टता से भरा हुआ है।महाभारत में, कर्ण का उल्लेख किए गए अनेक नाम हैं, जैसे सूत पुत्र, राधे, वीर, सूतपुत्र, राधेय, आदि। लेकिन प्रमुखतः उन्हें "कर्ण" के नाम से ही जाना जाता है। उनके असली माता-पिता का नाम कुंती और सूर्य देव है।
कर्ण का जन्म कुंती के द्वारा हुआ था, जो पांडवों की मां थी, सूर्य देव द्वारा दिये गये वर के माध्यम से। हालांकि, समाजी नियमों और निंदा का भय देखते हुए, कुंती ने कर्ण को एक टोकरी में रखकर नदी में बहा दिया। उसे एक चारखाने के कपड़े धोये हुए कपड़ों में समेटकर पाला-पोसा गया।
अपनी निम्न जन्म के कारण, कर्ण अपने जीवन के दौरान भेदभाव और निन्दा का सामना करता रहा। हालांकि, वह एक कुशल योद्धा और रथचालक बन गया, विभिन्न युद्ध कलाओं और शस्त्रों को सीखकर। उसके अत्याधुनिक योद्धा और रथचालक के नाम से प्रशंसा प्राप्त की।
कर्ण अपने दोस्त दुर्योधन के प्रति वफादारी अनलंघनीय थी। दुर्योधन, कर्ण के योद्धा कौशल और उसकी निष्ठा के प्रति प्रभावित होकर, उसे अंग राज्य (आधुनिक भारत के बिहार क्षेत्र के बिहार राज्य का भाग) का राजा बना दिया और उसे कई धन और सम्मान प्रदान किया।
महाभारत के दौरान, कर्ण को अपने दोस्त दुर्योधन के प्रति वफादारी और पांडवों के धर्मयुद्ध के सत्यापन के बीच तार-तार किया गया। वह जानता था कि पांडव, विशेष रूप से अर्जुन, उसके भाई थे, फिर भी उसने दुर्योधन के प्रति अपनी वफादारी और उसकी वायदों के कारण उनके खिलाफ लड़ने का चयन किया।
कुरुक्षेत्र युद्ध के दौरान, कर्ण का वीरता और युद्ध कला में महान होने के बावजूद, उसे कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा, जैसे कि विभिन्न योद्धाओं द्वारा उसके खिलाफ अनुचित तकनीक का प्रयोग, साथ ही उसके रथचालक के पुत्र का शाप, जो उसे युद्ध के एक महत्वपूर्ण क्षण में कमजोर कर दिया।
कर्ण का जीवन एक संघर्ष और आत्म-संजय की कहानी का रूप ले चुका था। उसकी विशेषता यह थी कि वह किसी भी समय पर अपने वचनों और अपने मूल्यों के पक्ष में खड़ा रहता था, चाहे वह किसी के साथ हो या उसके खिलाफ।
कर्ण के प्रति पांडवों की भी एक विशेष भावना थी। वे भी कर्ण के योद्धा कौशल और उसकी विचारधारा की प्रशंसा करते थे, लेकिन उन्हें उसके उत्कृष्टता को परिग्रह करने का मौका नहीं मिला।
कुरुक्षेत्र युद्ध के दिन, कर्ण ने वीरता का परिचय दिया, लेकिन उसके अंत का वक्त आया। जब उसकी रथ के पास चक्रव्यूह का नियोजन किया गया, उसने अर्जुन के सामने उत्कृष्टता दिखाई, लेकिन वह असामान्य परिस्थितियों में भी मर्यादा और नैतिकता का पालन किया।
कर्ण की कहानी धर्म, नैतिकता, और मानवता के महत्वपूर्ण मुद्दों पर एक गहरा विचार करने का एक मजबूत प्रेरणादायक संदेश लेकर आती है। उसका चरित्र महाभारत की उन कई अन्यमहान पात्रों में से एक है, जो हमें समय के साथ अध्ययन करने के लिए प्रेरित करता है।
अंततः, कर्ण की वफादारी, सम्मान और दुखद अवस्था को महाभारत में सबसे जटिल और रोचक पात्रों में से एक बनाती है, जिससे पाठकों और दर्शकों में प्रशंसा और सहानुभूति उत्पन्न होती है। उसकी कहानी मानव स्वभाव की जटिलताओं और कठिन परिस्थितियों में किए गए चुनावों के परिणामों का एक गहरा संदेश प्रदान करती है।
Story Of Karan : Epic Tales of Mahabharat